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मुश्किल हुई

गोपाल मोहन मिश्र
दरभंगा (बिहार)
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हमसफर यूँ अब मेरी मुश्किल हुई।
राह जब आसां हुई,मुश्किल हुई।

हम तो मुश्किल में सुकूं से जी लिए,
मुश्किलों को पर बड़ी मुश्किल हुयी।

ख्वाब भी आसान कब थे देखने,
आँख पर जब भी खुली,मुश्किल हुई।

फिर अड़ा है शाम से जिद पे दीया,
फिर हवाओं को बड़ी मुश्किल हुई।

वो बसा है जिस्म की रग-रग में यूँ,
जब भी पुरवाई चली,मुश्किल हुई।

रोज़ दिल को हमने समझाया मगर,
दिन-ब-दिन ये दिल्लगी मुश्किल हुई।

मानता था सच मेरी हर बात को,
जब नज़र उस से मिली मुश्किल हुई।

होश दिन में यूँ भी रहता है कहाँ,
शाम जब ढलने लगी मुश्किल हुई।

क़र्ज़ कोई कब तलक देता रहे,
हमसे रखनी दोस्ती मुश्किल हुई।

चाँद-तारे तो बहुत ला कर दिए,
उसने साड़ी मांग ली,मुश्किल हुई।

नन्हें मोजों को पड़ेगी ऊन कम,
आ रही है फिर ख़ुशी,मुश्किल हुई।

रोज़ थोड़े हम पुराने हो चले,
रोज़ ही कुछ फिर नयी मुश्किल हुई।

जो सलीका बज़्म का आया हमें,
बात करनी और भी मुश्किल हुई।

और सब मंजूर थी दुश्वारियां,
जब ग़ज़ल मुश्किल हुई,मुश्किल हुई॥

परिचय–गोपाल मोहन मिश्र की जन्म तारीख २८ जुलाई १९५५ व जन्म स्थान मुजफ्फरपुर (बिहार)है। वर्तमान में आप लहेरिया सराय (दरभंगा,बिहार)में निवासरत हैं,जबकि स्थाई पता-ग्राम सोती सलेमपुर(जिला समस्तीपुर-बिहार)है। हिंदी,मैथिली तथा अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले बिहारवासी श्री मिश्र की पूर्ण शिक्षा स्नातकोत्तर है। कार्यक्षेत्र में सेवानिवृत्त(बैंक प्रबंधक)हैं। आपकी लेखन विधा-कहानी, लघुकथा,लेख एवं कविता है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी भावनाएँ व्यक्त करने वाले श्री मिश्र की लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक- फणीश्वरनाथ ‘रेणु’,रामधारी सिंह ‘दिनकर’, गोपाल दास ‘नीरज’, हरिवंश राय बच्चन एवं प्रेरणापुंज-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शानदार नेतृत्व में बहुमुखी विकास और दुनियाभर में पहचान बना रहा है I हिंदी,हिंदू,हिंदुस्तान की प्रबल धारा बह रही हैI”