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सुखद अनुभव

उमेशचन्द यादव
बलिया (उत्तरप्रदेश) 
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‘कोरोना’ महामारी की वजह से पूरी दुनिया में तबाही मची हुई है। अधिकांश लोग बेरोजगार हो गए हैं,मैं भी इसी श्रेणी में हूँ। मैं अपने गाँव में परिवार और मित्रों के साथ जीवन व्यतीत कर रहा हूँ। एक दिन की बात है। घर बैठे-बैठे ऊब रहा था तो सोचा कि चलो खेतों की ओर घूम आया जाए। समय बिताने के लिए मैं घर से निकल गया तो रास्ते में एक मित्र भी मिला। हम दोनों साथ ही घूमने के लिए चल दिए। खेतों में घूमने से मन प्रसन्न हो ही गया। हम लोगों ने गन्ने का रस भी चूसा। फिर मन में ख्याल आया कि चलो साधु बाबा की कुटिया पर चला जाए,क्योंकि सत्संग मुझे बहुत पसंद है। बाबा की सेवा करके मन को शांति मिलती है। हम लोग बाबा के पास पहुंचे और दंडवत प्रणाम किया। बाबा का आशीर्वाद प्राप्त हुआ और उन्होंने बैठने के लिए कहा। हम लोग बैठ गए। फिर बाबा बोले,- आज मैं आप लोगों को कुछ और ज्ञानवर्धक जानकारी देना चाहता हूँ।
हमारे साथ कुछ और लोग भी बैठे हुए थे। सभी ने कहा,अच्छी बात है बाबा, हम जरूर सुनेंगे आप सुनाइए। फिर बाबा ने कहानी सुनाना शुरू किया-
एक बार की बात है। गुरुकुल से शिक्षा प्राप्त करने के बाद जब सभी विद्यार्थी विदा हो रहे थे तब गुरु जी ने उन्हें अपने जीवन का अनमोल अनुभव भी बता दिया। गुरु जी ने सभी शिष्यों को इकट्ठा करके अपना अनुभव बताना शुरू किया। सबसे पहले उन्होंने प्लास्टिक का एक थैला लिया। उसके बाद उस थैले में उन्होंने टेनिस के बॉल भर दिए। अब उसमें जगह नहीं थी यह सबने देखा। फिर उन्होंने छोटे – छोटे कंकड़ डालने शुरू किए। सारे कंकड़ भी गेंदों के बीच की खाली जगह में भर गए। थैला तो पहले से भरा था ही,अब वह और कड़ा हो गया। शिष्य अब यही समझ रहे थे कि गुरु जी अब इसे बंद कर देंगे,पर गुरु जी ने अगली कड़ी शुरू कर दी। तीसरी बार गुरु जी ने सबको दिखाते हुए उस थैले में रेत ( धूल-बालू ) डालना शुरू किया। सारी रेत भी उस थैले के कंकड़ों के बीच की खाली जगह में भर गई। सभी लोग हैरानी से देख रहे थे और मन ही मन उब भी रहे थे। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि गुरु जी क्या करने वाले हैं ? वे क्या संदेश देना चाह रहे हैं ? फिर भी सभी अनुशासन बनाए गुरु जी का आदर करते हुए ध्यान से उनकी बातें सुन रहे थे और अंदाज़ा लगा रहे थे। तभी गुरु जी ने चौथी कड़ी शुरू की और २ प्याले चाय भी उस थैले में डाल दी। चाय पड़ते ही थैला बिल्कुल पैक हो गया।
अब तक तो सभी शिष्य चुपचाप देख रहे थे लेकिन अब उनसे रहा नहीं गया और एक शिष्य ने पूछ ही लिया कि,गुरु जी आपने जो कुछ भी किया,कृपया हमें समझा दीजिए। शिष्य की जिज्ञासा को देख कर गुरु जी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने बताया कि,यह थैला हमारा जीवन है और इसमें जो टेनिस की गेंदें हमने डाली है वो हैं हमारे गुरु,माता-पिता,भाई-बहन,सगे-संबंधी और रिश्तेदार आदि। हमें अपने जीवन में सबसे पहले इन्हें ही स्थान देना चाहिए।
तभी दूसरे शिष्य ने पूछा कि गुरु जी कृपया ये भी बता दीजिए कि कंकड़ क्या है ? और हमारे जीवन में इसका क्या स्थान है ? गुरु जी शिष्य की जिज्ञासा को देखते हुए अपने ज्ञान की गंगा बहाने लगे। उन्होंने बताया कि थैले का कंकड़ हमारे जीवर का रोजगार,रुपया,गहना आदि है। हमें अपने जीवन में इसे दूसरे स्थान पर ही रखना चाहिए,नहीं तो जीवन कष्टदायक हो सकता है। अब सभी शिष्यों को गुरु जी के इस अनमोल ज्ञान का अंदाजा होने लगा था। तभी तीसरे शिष्य ने पूछा कि गुरु जी फिर रेत यानि मिट्टी का क्या संबंध है ? और हमारे जीवन में इसका क्या स्थान है ? गुरु जी का मन लगने लगा था। शिष्यों की इस जिज्ञासा प्रवृत्ति को देखकर वे ज्ञान की बौछार करते ही रहे। उन्होंने बताया कि इस थैले की रेत यानि मिट्टी का मतलब हमारे जीवन के झगड़े-फसाद से है। अपने जीवन में हमें इसे बिल्कुल आने ही नहीं देना चाहिए क्योंकि इसके आने से हमारा जीवन दुखों से भर जाएगा और हम चाह कर भी आगे नहीं बढ़ पाएंगे। जैसे कि मान लिजिए अगर थैले में मिट्टी(झगड़ा) को पहले भर लेते तो क्या बाद में कंकड़ (धन – दौलत) और टेनिस की गेंदें (गुरु,माता-पिता आदि) हम भर पाते ? नहीं बिल्कुल नहीं।
हाँ,एक बात है कि जब हम कंकड़ के चक्कर में पड़ते हैं तो रेत तो थोड़ी-बहुत आ ही जाती है। तभी एक शिष्य ने गुरु जी से बहुत ही अच्छा सवाल किया। उसने पूछा कि गुरु जी,अगर कंकड़ के साथ रेत आ जाए तो हमें क्या करना चाहिए.? और आपके अनुसार थैले की चाय का हमारे जीवन से संबंध है ? गुरु जी अपने शिष्यों पर गर्व और विश्वास करते हुए ज्ञान की गंगा बहाए जा रहे थे और शिष्य उसमें डुबकी लगाए जा रहे थे। गुरु जी ने चौथे शिष्य के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि इस थैले की चाय का संबंध हमारे जीवन में मित्र के साथ व्यतीत किए जाने वाले समय से है। अगर कंकड़ के साथ रेत आ जाए तो हमें अपने मित्र के साथ विचार-विमर्श कर लेना चाहिए। वही हमें इस समस्या से निपटने में हमारी मदद कर सकता है। इसलिए अपने जीवन में हमें अपने मित्र के लिए कुछ समय जरुर निकालना चाहिए और उसके साथ बैठ कर २ कप चाय या २ गिलास शर्बत जरुर पीना चाहिए। ऐसा करने से हमारे जीवन में मिठास बढ़ने लगती है और जीवन सुखमय बन जाता है।
अत: हम सभी को अपने जीवन में प्रथम वरीयता अपने सगे-संबंधियों को देनी चाहिए। उसके बाद व्यवसाय को,नहीं तो जीवन का कोई मतलब नहीं रह जाएगा,और व्यवसाय में आए उतार-चढ़ाव तथा प्रतियोगियों का सामना करना मुश्किल हो जाएगा। फिर जीवन में आई हर मुश्किल का सामना करते हुए आगे बढ़ते रहना है, तो कुछ समय अपने मित्रों के साथ भी जरुर बिताएं। मित्रों के सहयोग से जीवन में मिठास बढ़ जाती है। आप कितना भी व्यस्त रहें,लेकिन मित्र को सम्मान और समय जरुर दें। जीवन मंगलमय बन जाएगा। यह मेरा अनुभव है,इसे मैंने जिया है। बाबा की बात पर मुझे भी भरोसा हुआ,क्योंकि इस कहानी में जो कुछ भी बताया गया है और बताने का प्रयास किया गया है,वह बिल्कुल सत्य है। इसलिए-
जीवन नैया जब डगमग डोले,
तब अपने भी मुँह से ना बोले।
कहे ‘उमेश’ मित्र की सुन लो,
लेकिन मित्र अच्छा तुम चुन लो।
मित्र कभी असत्य ना बोले,
सारे बंद दरवाज़े खोले॥
खेतों में घूमना,गन्ने का रस चूसना और बाबा की कुटिया में बैठ कर उनके मुख से कथा श्रवण करने में हमें जो सुखद अनुभव हुआ,उसकी यह एक झलक मात्र है। वास्तविक सुख का वर्णन करना तो बहुत ही मुश्किल है।

परिचय–उमेशचन्द यादव की जन्मतिथि २ अगस्त १९८५ और जन्म स्थान चकरा कोल्हुवाँ(वीरपुरा)जिला बलिया है। उत्तर प्रदेश राज्य के निवासी श्री यादव की शैक्षिक योग्यता एम.ए. एवं बी.एड. है। आपका कार्यक्षेत्र-शिक्षण है। आप कविता,लेख एवं कहानी लेखन करते हैं। लेखन का उद्देश्य-सामाजिक जागरूकता फैलाना,हिंदी भाषा का विकास और प्रचार-प्रसार करना है।

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