डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
******************************
निकला है चाँद मेरा,
गुलशन पर नूर छा गया
हमसे ना पुछ दिल पर,
क्यों गुरूर आ गया।
महक उठी है फिजाएं,
आज कैसी ए हवा चली
खिल गई है कली-कली,
महक उठी है गली-गली।
देखी जो तेरी तस्वीर,
मैने दर्पण को निहारा
दिखता रहा उसमें मुझे,
सिर्फ अक्स तुम्हारा।
हवाओं को भी देख,
रुख मोड़ लिए अपने
छेड़ रहे उस भस्म को जहां,
दफन हुए अरमां-मेरे सपने।
मिल गया अब मुझे,
जीने का बहाना
पहले थी उनकी याद,
अब बातों का बहाना।
ऐसा ना हो मेरी लेखनी,
ज्यादा लिख जाए।
डरता है दिल मेरा कहीं,
राज-ए-दिल ना खुल जाए॥