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शिशिर का जाना बसंत का आना

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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वसुंधरा को पट्ट गुलाबी, मलमल वाली ओढ़ाते,
आया था शिशिर सुहाना, धीम चाप पद मुस्काते।
हिम का छाजन छाया ऊपर, अपनी उस तरुणाई में,
होकर वृद्ध शिशिर जाता है, फागुन खड़ा विदाई में।

भय बिन थर-थर कंपन करता, वायु बर्फानी सिहराता,
दुबकाता दुलाई रजाई, ध्वजा शीत की फहराता।
चतुर सुजान शिशिर वैद्य बन, स्वास्थ्य लाभ भी देता,
इस मौसम फल-फूल-उपज भी, बहुतायत पैदा होता।

शीतल स्पर्श सुखद हृदय, भाव विभोर किया भारी,
अपने सर्व शीत रंग दिखा, करे गमन की तैयारी।
परिवर्तन का पाठ पढ़ाता, ऋतुओं के हम आभारी
करते स्वागत आते-जाते, ध्वनि बजा मंगल तारी।

देख रहा थम-थम कर पीछे, है उदास जाते- जाते,
जाओ शिशिर कह रहा बसंत, पीत वसन भू पहनाते।
अनासक्त हो ठंड गया भी एक ही बात दोहराता,
परिवर्तन ही जीवन है, मौसम कहता सुन भ्राता॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।