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हे हवा…

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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नीलगगन के प्यारे शहजादे, क्यों आए,
धीमी गति से आकर, मन मेरा भरमाए
तुम तो तूफान हो, धीरे-धीरे कैसे आए!
क्या हमारे साजन को भी संग में लाए ?

क्यों मन को उड़ाए जा रही हो, हे हवा,
क्यों प्यार की धूल लगा रही हो, हे हवा
किसके लिए आतुर कर रही हो, हे हवा,
प्रीत की चुभन हो रही है, मान जा हवा।

क्यों मुझे प्रियतम की याद, दिलाती हो ?
बुझे हुए प्रेम दीप को, क्यों जलाती हो!
मन्द हवा के झोंके से, मुझे बुलाती हो,
बन्द दरवाजा देख, खिड़की से आती हो‌।

हे हवा आ गई तो, जा प्रेम नींद सुलाकर,
वरना ‘देवन्ती’ कहेगी, हवा गई रुला कर
अंतर मन में लगा दी है, प्यार की धूल,
हे हवा, अब तुम्हीं हटा दो प्यार की धूल।

तुझे देख चाँद-चाँदनी, आ गए हैं मिलने,
प्रेम की धूल किसके लिए है, यह जानने।
दिल का रोगी हूँ, तुम बनो मेरे लिए दवा,
निवेदन है, कहना मेरा मान जा ‘हे हवा’॥

परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है |