सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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लिया हाथ में मैंने दर्पण,
सोचा स्वयं से बात करूँ
देखूँ अपना वर्तमान,
प्रतिबिंब देख कुछ मनन करूँ।
कितना पहले से बदल गई,
मुझमें इतना क्यों अंतर है
प्रतिबिंब देख सोचा मैंने,
क्या मेरा ही यह चितवन है ?
बोला दर्पण यह बतलाओ,
क्या तुमको यह ज्ञात नहीं
समय, शरीर और मन हैं अस्थिर,
इसमें संशय ज़रा नहीं।
सबसे सच्ची बातें करता,
दर्पण नहीं किसी से डरता
झूठ-छलावा इसे न भाता,
सच्चे मन का है यह भ्राता।
बीता जो इतिहास बना वो,
भविष्य हमें कुछ ज्ञात नहीं
है आज सामने साक्ष्य रूप,
दर्पण कहता सच बात यही।
आज जो दिखता वही सत्य है,
बाक़ी शेष छलावा है
जीवन जीना आज ये सच है,
बाक़ी शेष दिखावा है।
दर्पण ने दिखलाया मुझको,
सही बात मुझे लगी भली।
दिल को छू गई बात ये मेरे,
उचित बात मैंने ये मान ली॥