सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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कहते हैं प्रजातंत्र में जनता की सरकार,
पर सब-कुछ है उलटा-पुलटा पैसे से है प्यार।
छोटी-छोटी चीज पर बिक जाता है वोट,
कितनी जनता नहीं समझती किसको डालूँ वोट!
नेता भी सब मँझे खिलाड़ी एक से बढ़ कर एक,
अपने हित में काम हैं करते जो उनके लिए है नेक।
कहाँ हारना, कहाँ जीतना, कहाँ लगाना दाँव!
सब हैं तिकड़मबाज सोच कर फैलाते हैं पाँव।
भोली-भाली जनता को ये चकमा देते रहते,
कुछ तो जाते समझ, मगर कुछ धोखे में ही रहते।
फिर भी वोट तो देना ही है अपना है अधिकार,
निर्वाचित हो चाहे कोई, किसकी बनती है सरकार।
नीचे से ऊपर तक बिगड़ा प्रजातंत्र का खेल,
नेता एक अकेला, अच्छा कैसे करे वो सबका मेल॥