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पापा से है अस्तित्व

कमलेश वर्मा ‘कोमल’
अलवर (राजस्थान)
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उनकी साँसों से मेरी खुशियाँ (पिता दिवस विशेष)….


मेरे पापा मेरी पहचान हैं, मेरी शान हैं,
मुझे गर्व है कि मैं उनका अभिमान हूँ।

पिता उड़ान की वह सीढ़ी हैं,
जिनके सहारे मैं आगे बढ़ पाई हूँ।

कंधों पर बिठाकर ऊँचा उठना सिखाया,
मान-सम्मान के साथ आगे बढ़ना सिखाया।

मेरे पापा मेरे सपनों की उड़ान हैं,
तभी तो वह मेरी पहचान, मेरी शान हैं।

माँ ने कहा-कभी किसी से लड़ना नहीं,
पिता ने कहा-कभी किसी से डरना नहीं।

मेरे पापा इस दुनिया में सबसे प्यारे,
इस जहां में मेरे पापा सबसे न्यारे।

पापा पहाड़ जैसे हैं मजबूत,
उनसे ही मेरा है वजूद।

पिता ने कहा-कभी असफलता से डरना नहीं,
जीवन में कभी पीछे मुड़ना नहीं।

मेरे पापा मेरी जान हैं, जहान हैं,
वहीं तो मेरी पहचान हैं और मेरी शान हैं॥

परिचय –कमलेश वर्मा लेखन जगत में उपनाम ‘कोमल’ से पहचान रखती हैं। ७ जुलाई १९८१ को दुनिया में आई रामगढ़ (अलवर) वासी कोमल का वर्तमान और स्थाई बसेरा जिला अलवर (राजस्थान) में ही है। आपको हिन्दी, संस्कृत व अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। एम.ए. व बी.एड. तक शिक्षित कमलेश वर्मा ‘कोमल’ का कार्यक्षेत्र व्याख्याता (निजी संस्था) का है। इनकी लेखन विधा-गीत व कविता है। इनकी रचनाएं पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हुई हैं तो ब्लॉग पर भी लेखन जारी है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-“कविता के माध्यम से विचार प्रकट करना एवं लोगों को जागरूक करना है।” पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, एवं जय शंकर प्रसाद हैं तो विशेषज्ञता- पद्य में है। बात की जाए जीवन लक्ष्य की तो भारतीय समाज में सम्मान प्राप्त करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार -“राष्ट्र एक व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास राष्ट्र पर निर्भर करता है। हिंदी हमारी राष्ट्र और मातृत्व भाषा है, जो सरल तरीके से समझी और बोली भी जा सकती है। इसलिए इसे बढ़ाया ही जाना चाहिए।”