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अपने बिछड़ गए

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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अपने बिछड़ गए, सपने टूट गए,
सोचा था वह सहारा बनेंगे
पर, बीच राह में वह हमें अकेला छोड़ गए
अपने बिछड़ गए, सपने टूट गए।

क्या-क्या ख्वाब देखे थे हमने,
सब धरे के धरे रह गए
उम्मीदों के सहारे हम तुझे,
ऊँचाइयों पर लाना चाह रहे थे
पर ईश्वर की अनहोनी से,
वह अपने बिछड़ गए।

अब सिर्फ तेरी याद ही है बाकी,
और आँसुओं का साथ ही है बाकी
बहुत दु:ख होता है जब,
कोई अपना चला जाता है
वह सब धरा का धरा रह जाता है,
आसमान से जब तारा टूट जाता है।

बुलंदियों की ख्वाहिश करते थे हम,
पर अब ज़मीं है बाकी
सोचा भी ना था तू,
इतनी जल्दी अलविदा कह जाएगा।

तेरी परछाइयों के साये में,
हम अपना चेहरा देखते थे।
पर ऐसा साथ अब छूट गया,
अपने बिछड़ गए, सपने टूट गए…॥