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साठ से लगता भय

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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बहुत भय लगने लगता है, उम्र साठ से,
जीना भूल जाते हैं, रहना ठाठ-बाट से।

बचपन जवानी सब, पीछे छूट जाता है,
साठ का बुढ़ापा, नाता जोडने आता है।

साठ की दहलीज पार होते, घुटना गया
रूप से बे-रूप हुए, तन में खिंचाव आया।

विवश हो के, लाठी का ले लिया सहारा,
सब लोग कहेंगे-बुड्ढा हो गया है बेचारा।

हाय रे हाय! कहाँ खो गई, मेरी जवानी,
चाँदनी रात में मिलना, गुलाब निशानी।

तुम क्यों आए साठ, तेरी मौत न आई,
तेरे कारण, वृद्ध कहाए हैं पुरूष-लुगाई।

साठ का दाग लगते, मुख में दाॅ॑त नहीं,
दु:ख है जीवन में, प्रेम की तो बात नहीं।
नहीं कोई सखा न सखी, अकेले रहना,
रातभर घुटना दर्द से, करवट बदलना।

साठ आने से पहले, करना है नियंत्रण,
वरना साठ देगा, बीमारी को निमंत्रण।

दाल-रोटी खाकर मन को शान्त रखना,
तब सीख जाओगे ‘उम्र साठ से लड़ना॥’

परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है |