ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’
अलवर(राजस्थान)
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हाँ, मैंने एक माँ को,
भीख माँगते देखा है
लाचार और बेसहारा होकर,
जन-जन के आगे,
गिड़गिड़ाते देखा है।
हाँ, मैंने एक माँ को…
क्या बुजुर्ग होना,
पाप हो गया है ?
या फिर अभिशाप हो गया है ?
अनजान अजनबी-सी,
घूँघट की ओट में
एक चेहरा सिसकते देखा है।
हाँ, मैंने एक माँ को…
प्रसव पीड़ा सह कर,
बेटे को जन्म देती है
पाल-पोस बड़ा करती है,
आँच न आने पाए कभी भी
माँ की ममता को,
तड़पते देखा है।
हाँ, मैंने एक माँ को…
क्यों संस्कार फट रहे हैं,
सीने वाला कोई नहीं है
या फिर मर गया,
उनका ज़मीर!
मैंने संस्कारों को बलि,
चढ़ते देखा है।
हाँ, मैंने एक माँ को…
उम्मीद लगाए बैठी थी,
सपने संजोए बैठी थी
बुढ़ापे का बनेगा सहारा,
लेकिन बेटे ने कर दिया किनारा
हाय! कलेजा,
फटते देखा है।
हाँ, मैंने एक माँ को…॥
परिचय- ताराचंद वर्मा का निवास अलवर (राजस्थान) में है। साहित्यिक क्षेत्र में ‘डाबला’ उपनाम से प्रसिद्ध श्री वर्मा पेशे से शिक्षक हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कहानी,कविताएं एवं आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। आप सतत लेखन में सक्रिय हैं।