संजय एम. वासनिक
मुम्बई (महाराष्ट्र)
*************************************
बारिश की बूंदें जब,
समाती है मिट्टी में…
और महकती है मिट्टी,
मिट जाने के लिए…।
बारिश के प्यार में,
हो जाती है मदहोश…
मोहब्बत में उसकी,
बह जाने के लिए…।
कुछ तो चाहत होगी,
इन बूँदों की भी जैसे…
बरसों से तडप रही हो,
मिलन की आस में…।
पहली बारिश की बूँद,
जब छूती है मिट्टी को…
सुलग-सा जाता है,
तन-बदन उसका…।
मिटा देती है खुद को,
समा जाती है मिट्टी में…
और बन जाती है,
मिट्टी का ही अंश…।
पड़ते ही बीज उन दोनों के,
आगोश में फूटता है अंकुर…।
और होती है शुरूआत,
एक नए जीवन की…॥