हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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रचनाशिल्प:२ २ २ २ २ १ १ २ २ २ २ २ २ २ १ १ २ २…
हम बालक हैं आप बड़े हो, जीना हमको आप सिखा दो।
पूजा करते आप जिन्हें भी, उनसे हमको आप मिला दो॥
हमने देखे मात-पिता ही, जीवन दाता मात-पिता हैं।
जानें हम भी बात अगर ये, तब समझेंगे कौन बड़ा है।
हम ये बातें जान सकेंगे, हमको भी यह ज्ञान बता दो॥
हम बालक हैं…
हम रोते तो आप हँसाते, जब भूखे हों आप खिलाते।
लेकिन तब भगवान न आते, फिर क्यों उनका मान बढ़ाते॥
उनको इतना मान मिले क्यों, हमको भी तो एक विधा दो॥
हम बालक हैं…
इतनी श्रृद्धा लोग दिखाते, कब उनके दर्शन क’र पाते।
हमको जिनका रूप बताते, क्यों उनको हम देख न पाते।
इस दुनिया को एक विधा दो, बचपन को इक ईश दिखा दो॥
हम बालक हैं…
(बच्चों के लिए सीख-उत्तर )
सदियों से यह सृष्टि सजी है, प्रभु जी इसका भार उठाते।
जीवन से जीवन र’चने का, जीवन को ही मार्ग दिखातें
बच्चों इतनी सीख सजा लो, जीवन को भव पार लगा लो।
अपना बचपन तुम न मिटाना, जीवन का सम्मान सजा लो।
तुम बालक हो…
परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।