प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी’
सहारनपुर (उप्र)
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शिव अखियाँ बरसी सावन में,
संगीत बहे बन असुवन जल,
टपटप टपटप टप टप टप टप।
कोई जैसे पत्थर मारे मुझे,
तुम बिन मन में वो टीस उठी
हर आह पे लिक्खा नाम शिवे,
गिर-गिर के फिर-फिर से मैं उठी।
क्रंदन वंदन में बदल दिया,
मत देर करो अब तारन में॥
शिव अखियाँ बरसी सावन में…
एक ऐसी तड़प है तन-मन में,
बस नाम तुम्हारा भजती हूँ
हर चौक पे मोड़ पे होके खड़े,
बस राह तुम्हारी तकती हूँ।
सुख-साधन की शिव चाह नहीं,
बैठो जी प्रभु मन-आसन में॥
शिव अखियाँ बरसी सावन में…
आँसू की ओस का संग्रह कर,
शिव चरण तुम्हारे धोती हूँ
अपने गुरु देव की पा के कृपा,
मन नाम बीज शिव बोती हूँ।
गलना होगा, सड़ना होगा,
तब बीज उगे मेरे दामन में॥
शिव अखियाँ बरसी सावन में…
मैं ढूंढ रही हूँ तुमको शिवे,
हर पल हर साँस की आहट में
मैं मिट जाऊँ कोई बात नहीं,
शिव नाम लिखूं इस तन घट में।
फूटे घट आपके चरणों से,
बस इतनी कृपा करो जीवन में॥
शिव अखियाँ बरसी सावन में…
संगीत बहे बन असुवन जल,
टपटप टपटप टप टप टप टप॥