प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी’
सहारनपुर (उप्र)
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निराशा छोड़ दो प्यारे कदम आगे बढ़ाना है,
नहीं यूँ हौंसला छोड़ो, तुम्हें कुछ कर दिखाना है।
अँधेरा कब रहा हरदम सुबह बस आने वाली है,
तिमिर से जूझने की भोर तक हिम्मत जुटानी है।
नहीं उलझो सरल है राह, यदि संकल्प सच्चा है,
हवा का रुख़ बदल दो तुम, अगर विश्वास पक्का है।
सुधारो अपनी क़िस्मत तुम, ज़रा दो कुछ समय उसको,
जलाओ ज्ञान का दीपक, बनाओ अपना जीवन तुम।
जगा कर अपनी शक्ति को लक्ष्य तक जा पहुँचना है,
नहीं डरना है, बन कर वीर यह पथ पार करना है।
उदय होगा नए दिनमान का पथ जगमगाएगा,
यही दीपक तुम्हें फिर ज्ञान सूरज से मिलाएगा॥