सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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आज मेरे बराबर खड़ी हो गई,
मेरी नन्हीं परी अब बड़ी हो गई।
धीरे-धीरे से बचपन बिदा हो रहा,
और अगला सफ़र अब शुरू हो रहा।
टुकड़ा-टुकड़ा जो सपनों का सजने लगा,
जोड़कर उसको अरमान बनने लगा।
जो लगे प्रिय, वही वस्तु बस पास हो,
ना कोई रोके-टोके, ना व्यवधान हो।
है लगन मन में एक लक्ष्य अपना चुनें,
आगे बढ़ती ही जाएँ न विश्राम लें।
पथ में अवरोध है यह समझने लगी,
उससे लड़ने की वह नीति पढ़ने लगी।
वर्ष बारह की अब हो गई लाड़ली,
मेरी प्यारी परी मुझे लगे भली।
लक्ष्य पर अपने आगे को बढ़ती रहो,
अपने सपनों को साकार करती रहो।
सफलता क़दम चूमें जिस ओर जाओ,
सदा ख़ुश रहो तुम सदा मुस्कुराओ॥