बबीता प्रजापति
झाँसी (उत्तरप्रदेश)
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मेघ, सावन और ईश्वर…
देखो री सखी,
घिर-घिर आए बदरा
अम्बुआ पे झूले पड़ गए,
सजनी नैन लगाए कजरा।
देखो री सखी…
कोयलिया कुहके,
पपीहा पीहूके
मोर हुआ जाय बेसबरा,
देखो री सखी…।
धरा पर जैसे गिरती बुंदिया,
मंगल गीत गाने लगी सखियाँ
आनंद हृदय में आ ठहर,
देखो री सखी….।
बिन साँवरिया सावन कैसा !
हृदय न समाए मनभावन कैसा
नैना ढूँढे, इत-उत देखे।
आज लगा दो पहरा।
देखो री सखी,
घिर-घिर आए बदरा॥