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गुरु महिमा अपार

धर्मेन्द्र शर्मा उपाध्याय
सिरमौर (हिमाचल प्रदेश)
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गुरु आत्मा गुरु परमात्मा,
गुरु ही गुणों की खान
गुरु ज्ञान है, गुरु विज्ञान,
गुरु ही जीवन का सार।

मिटा देते मन के क्लेश सब,
करते सदा भव से पार
सिखाते कला जीवन जीने की,
काट देते दुःख कष्ट विशाल।

गुरु ही दिखाते सत्य राह,
मिटा देते माया का जाल
मिटाते मन-माया का जाल,
बना देते हैं सभ्य विद्वान।

कभी डाँट कर, कभी प्यार से,
कभी कमियाँ बताते समझाकर
ज़िंदगी जीने की कला सिखाते,
मिलाते प्रभु को इस जहां पर।

ईश्वर से मिलना नहीं मुश्किल,
बताते रहते उपाय आसान
मुश्किलों से है जब घिर जाते,
पार करने आ जाते तत्काल।

दूर कर देते तम तन-मन से,
जगा देते ज्ञानपुंज प्रकाश
सूर्य-सा स्वयं जलकर,
चंद्र-सी करते शीतलता प्रदान।

रे मन न भूल गुरु को,
गुरु की महिमा है अपार।
जो जन जीते गुरु उऋण को,
मिले उनको साक्षात भगवान॥