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शिव-सुंदर के गुण मैं गाऊं

प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी’
सहारनपुर (उप्र)
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शिव की कृपा का करके चिंतन,
गुरु आज्ञा से नाम दोहराऊं।
भव में नित्य अकेली रह के,
शिव-सुंदर के गुण मैं गाऊं॥

कैसे मैं चाहूं अपने शिव को,
कैसे मनाऊं अपने शिव को।
पास नहीं ऐसा कुछ मेरे,
जो कुछ मैं शिव को दे पाऊं…।
भव में नित्य अकेली रह के,
शिव-सुंदर के गुण मैं गाऊं…॥

सावन बरसे बूँद-बूँद में,
बिम्ब नेत्र की मूंद-मूंद में।
सावन जल में अश्रु-बूँदें,
मिला-मिला शिव को नहलाऊं…।
भव में नित्य अकेली रह के,
शिव-सुंदर के गुण मैं गाऊं…॥

साँसों की तुम शर्त बने हो,
प्रेम-भक्ति का अर्थ बने हो।
ध्यान धरुं जब तुमरा हर पल,
निश्चित गंगा जल बन पाऊं…।
भव में नित्य अकेली रह के,
शिव-सुंदर के गुण मैं गाऊं…॥

घोर-घटा आकार व्योम की,
शिव-सावन मैं धार-प्रेम की।
पी के गरल सगरे जीवन के,
शिव पर प्रेम-सुधा बरसाऊं…।
भव में नित्य अकेली रह के,
शिव-सुंदर के गुण मैं गाऊं…॥

शिव की कृपा का करके चिंतन,
गुरु आज्ञा से नाम दोहराऊं।
भव में नित्य अकेली रह के,
शिव-सुंदर के गुण मैं गाऊं…॥