हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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भरी दोपहरी चढ़ पहाड़ी पर,
दुश्मनों को वहाँ से खदेड़ा था
पाकिस्तान के नथुने फूला कर,
रणबांकुरों ने किया बखेड़ा था।
सरहदों की सुरक्षा खातिर उन्होंने,
अपने सीने में खाई जब गोली थी
लगा था कारगिल की पहाड़ियों पर,
तब खेली किसी ने खून की होली थी।
वे और नहीं थे, वीर सैनिक थे हमारे,
जिनके कारण हम घरों में सुरक्षित थे
जीएं या मरें, पर तिरंगा न झुकने पाए,
उनके बुलन्द इरादे कितने लक्षित थे ?
जान जाएगी यह परवाह न थी उनको,
बस राष्ट्र विजय ही उनका सपना था
भारत माँ की लाज बचाना था धेय तो,
फिर कहाँ किसी को भला थकना था ?
विजय दिवस की इस अनूठी गाथा को,
हम नई पीढ़ी को जब-जब सुनाएंगे
रोम हर्षक नव क्रान्ति का संचार कर,
तब उनमें राष्ट्र भक्ति का भाव जगाएंगे।
हटा कर विदेशी फौज को पहाड़ी से,
घाटी में था जब वह विजयघोष हुआ।
भारत माँ के उन लालों ने था मानो तब,
अपने बलिदानों से उन्नत अम्बर छुआ॥