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स्व-मन स्व-नियन्त्रण

प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी’
सहारनपुर (उप्र)
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मन पर दया और मन का दुलार।
महंगा पड़ा है तुझको बारम्बार॥

निकृष्ट सोच इसकी जलन हम सहन करें,
इसकी भोग वृत्तियों को कब तक वहन करें।
किसी से बता ना पाएं पड़ती दुत्कार,
मन पर दया और…॥

जलने दो इसको यूँ ही गलत बात मानो ना,
जलने से कुंदन शुद्ध इस सच को जानो ना।
इसके साथ मिल मनमानी रोके उध्दार,
मन पर दया और…॥

भोज, भोग, धन, रूप-रस खींच जाए ये तो बरबस,
स्वाद मौज याद रक्खें भूले हरि नाम हँस-हँस।
अड़ जाए जिस पर भी, ये मत दो वो इसको यार,
मन पर दया और…॥

जिस मोह में ये बांधे हटा दो वो इसके आगे,
हरि नाम इसको रटाओ चाहे ये जितना भागे।
जबरन से मीत बनाओ इसको सरकार,
मन पर दया और…॥

इंद्रियों को जब तक हासिल भोगों का स्वाद है,
तारक हरि नाम मीठा लगता बे स्वाद है।
मानव जनम ना मिले पगले हर बार,
मन पर दया और…॥

मन पर दया और मन का दुलार।
महंगा पड़ा है तुझको बारम्बार…॥