डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
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मेघ, सावन और ईश्वर…
सावन-माह बड़ा ही पावन,
भक्तिभाव में डूबा जन-जन।
कहीं भजन, शिव झांकी मिले,
कहीं शंखनाद कहीं दीप जले।
भोलेनाथ की सजी नगरिया,
कांवर लेकर चले कांवरिया।
मनभावन सावन आयो रे,
मनभावन…॥
रिमझिम-रिमझिम पड़े फुहार,
बैरी बादल घिर-घिर छायो रे।
बिजली कौंधे मोहे डराय,
बड़ा मनवा मोर घबरायो रे।
जा बैठे परदेश पिया,
अब चैन कहाँ से आयो रे।
मनभावन सावन आयो रे,
मनभावन…॥
जी चाहे बन जाऊं बदरिया,
जा बरसूं मैं उनकी अटरिया।
छम-छमा-छम ऐसे बरसूं,
शीतल कर दूं मन की गगरिया।
कब तक ऐसे राह निहारुं,
सूनी रह गई गली डगरिया।
मनभावन सावन आयो रे,
मनभावन…॥
चहुँ-ओर हरियाली छाई,
ताल-तलैया भर उपलाये।
सखियाँ मस्त मगन हो झूले,
तीज कजरी सबके मन भाये।
जल-दर्पण में उनको देखूँ,
विरह से नैना भर-भर आये।
मनभावन सावन आयो रे।
मनभावन…॥
