डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’,
जोधपुर (राजस्थान)
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समर्पण अध्यात्म से हो तो चिंतन- मनन होता है,
समर्पण धर्म से हो तो ईश्वर प्राप्त होता है।
स्मर्पण श्रद्धा से हो तो इंसान खुद से मिलता है,
समर्पण देश की धरती को, जहाँ इंसान पलता है, रहता है।
समर्पण गुरु ज्ञान को, जो मार्ग प्रशस्त करते हैं,
समर्पण माता-पिता को, जिन्होंने जन्म दिया;जीवन दिया, जीने का ढंग दिया।
समर्पण समाज को, मान-सम्मान प्रतिष्ठा का अवसर दिया,
समर्पण दु:ख के क्षणों को, हिम्मत-हौंसला दिया।
समर्पण परिवार को, एकता का पाठ पढ़ाया,
समर्पण दोस्तों को, अच्छे-बुरे समय में साथ निभाया।
समर्पण कलम को, जिसकी वजह से मान और सम्मान मिला,
समर्पण ही से अधिकार है और ताकत हिम्मत मिली।
समर्पण जीवन-साथी को, जीवन को आगे बढ़ाया,
समर्पण बच्चों को, खुशी का अहसास कराया॥