प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी’
सहारनपुर (उप्र)
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मुख रूपी द्वार जीभ रूपी दहलीज़ पर,
शिव नाम का एक दीपक जलाऊं।
अंदर उजियारा कभी बाहर उजियारा,
तन-मन भवन में फिर उसको घुमाऊं॥
ज्ञान की तीली से दीपक जलाया,
बहुत जतन से बुझने से बचाया।
प्रेम की बाती में अंसुवन का तेल डार,
श्रद्धा गुहार कर शिव जी बुलाऊं॥
शिव नाम का एक दीपक जलाऊं…
शिव नाम दीपक कल्प-तरु जैसा,
सोच के जलाओ जैसा पाओ जी वैसा।
तुमरे दरश की आस लिए मैं,
बार-बार शिव प्रभु जी उसको जलाऊं॥
शिव नाम का एक दीपक जलाऊं…
ज्यों-ज्यों दीप की ज्योति बढ़े जी,
मोह-माया तिल-तिल के जले जी।
भक्ति की ज्योति और ज्ञान के प्रकाश में,
खुद भी नहाऊं और सबको नहलाऊं॥
मुख रूपी द्वार जीभ रूपी दहलीज़ पर,
शिव नाम का एक दीपक जलाऊं।
अंदर उजियारा कभी बाहर उजियारा,
तन-मन भवन में फिर उसको घुमाऊं॥