हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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धर्म कर्म के भाव हों, रहे सत्य आधार।
राम नाम की नाव ही, लगा सके भव पार॥
राम जगत के देवता, संरक्षण में जीव।
भले कर्म जीवन करें, भरे सुखों की नींव॥
त्याग प्रेम की भावना, लगन तपस्या योग।
मिला करें संकल्प से, सदा सुखों के भोग॥
सृष्टि अंग जीवन बना, हैं जिसमें हम आप।
होता प्रभु का जाप तो, मिटें रोग संताप॥
धरा गगन खुशियां रचेंं, करके प्रति क्षण मेल।
किरण वायु मिलकर करें, धरा गगन में खेल॥
धरा गगन को देख के, सजे जगत में ज्ञान।
सजी रहेगी सृष्टि तो, बना रहेगा मान॥
परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।