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भक्ति-भाव वार्तालाप

प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी’
सहारनपुर (उप्र)
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विशेष-प्रस्तुत रचना में मैं जिव्हा को अपनी सखी मानकर उससे वार्तालाप कर रही हूँ। मैं जिव्हा को अपनी सखी की भूमिका दे चुकी हूँ, क्योंकि मन पर मुझे भरोसा बहुत कम है। रचना ‘ओ री सखी जाए सब जी की जलन’ में ओ री सखी अर्थात जिव्हा (जीभ) है।

ओ री सखी, जाए सब जी की जलन,
सुख-राशि शिव नाम की रटन।

जलन है जनमों पाप-करम की,
रह‌ सह-सह नित नाम मगन।

जग में ज्वाला विषय-भोग की,
परमानंद शिव-धाम सदन।

प्रभु निष्ठा जो नहीं हृदय में,
सह ना पाए विष भोग अगन।

तब तक रही मोह-माया बिच,
ली‌‌ ना जब तक प्रभु शरन।

धीर-धर्म मुख‌ नाम‌ जपूं‌‌ मैं,
गुरु, प्रभु-कृपा से होय तरन।

चलूं अग्नि-पथ जलूं निरंतर,
छोड़ूं ना शिव जी के चरन।

शुरू-शुरू में ‌पुलक हुई ना,
अंग-अंग अब प्रभु थिरकन।

एक बार ‌लड़‌ ली माया से,
अब शिव चंदन शीतल मन।

छूटें जाए जो क्षण हो विचलित,
जग, रिश्ते-नाते, परिजन।

काम, क्रोध, मद, ऐसे ढीठे,
थकें ना कर नित आक्रमन।

भगत बनूं तो भगति निभाऊं,
भूले करूं ना भोग चयन।

जो परमात्म की राह चल पड़ा,
सब जग करे विरोध सहन।

भगत की उमर जात ना देखो,
देखो सांची भगति उमगन।

पाऊं भगत अमृत-पद तब ही,
व्यथित ना छोडूं हरि भजन।

मानस-देह मिली सुमिरन हित,
नित-नित शीश नवाके नमन।

ओ री सखी, जाए सब जी की जलन।
सुख-राशि शिव नाम की रटन॥