दिल्ली
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‘महिला समानता दिवस’ (२६ अगस्त) विशेष…
दुनियाभर में महिलाओं को सशक्त बनाने, शिक्षा से राजनीति और आर्थिक भागीदारी तक विभिन्न क्षेत्रों में लैंगिक असमानताओं को दूर करने के प्रयासों को तीव्र गति देने के लिए ‘महिला समानता दिवस’ मनाया जाता है। सन १९२० में इस दिन संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में १९वां संशोधन स्वीकार किया गया था। यह दिन महिलाओं को पुरुषों के समान मानने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। न्यूजीलैंड विश्व का पहला देश है, जिसने १८९३ में महिला समानता की शुरुआत की। महिलाओं को समानता का दर्जा दिलाने के लिए लगातार संघर्ष करने वाली महिला वकील बेल्ला अब्जुग के प्रयास से १९७१ से ‘महिला समानता दिवस’ के रूप में मनाया जाना जारी है। यह दिन व्यापक मानवाधिकारों और सतत विकास के साथ लैंगिक समानता के परस्पर संबंध पर जोर देता है।
महिलाएं ही समस्त मानव प्रजाति की धुरी हैं। वो न केवल बच्चे को जन्म देती हैं, बल्कि उनका भरण-पोषण और संस्कार भी देती हैं। महिलाएं अपने जीवन में एक साथ कई भूमिकाएं जैसे-माँ, पत्नी, बहन, शिक्षक, दोस्त बहुत ही खूबसूरती के साथ निभाती हैं। बावजूद क्या कारण है कि आज हमें महिला समानता दिवस मनाए जाने की आवश्यकता है। महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए जरूरी है कि अधिक महिलाओं को रोजगार दिलाने के लिए भारत सरकार को जरूरी कदम उठाने होंगे। सरकार को अपनी लैंगिकवादी सोच को छोड़ना पड़ेगा।
भारत में महिलाओं की उपेक्षा, भेदभाव, अत्याचार एवं असमानता के कारण महिला समानता ज्यादा अपेक्षित है। भारत ने महिलाओं को आजादी के बाद से ही मतदान का अधिकार पुरुषों के बराबर दिया, परन्तु यदि वास्तविक समानता की बात करें तो भारत में आजादी के ७८ वर्ष बीत जाने के बाद भी महिलाओं की स्थिति चिन्ताजनक एवं विसंगतिपूर्ण है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासन में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने में काफी प्रगति देखी गई है, खासकर शिक्षा और राजनीतिक प्रतिनिधित्व जैसे क्षेत्रों में। नारी शक्ति वन्दन अधिनियम-२०२३ से नारी शक्ति को राजनीति में समानता देने की शुरुआत हुई है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसी सरकारी पहलों ने समाज में महिलाओं और लड़कियों की स्थिति को सुधारने पर ध्यान केंद्रित किया है। इसके अतिरिक्त, कार्यबल और नेतृत्व की भूमिकाओं में महिलाओं की भागीदारी धीरे-धीरे बढ़ रही है। इन प्रगतियों के बावजूद महत्वपूर्ण चुनौतियाँ बनी हुई हैं। भारत में लैंगिक असमानता अभी भी व्याप्त है, खासकर ग्रामीण इलाकों में, जहाँ महिलाओं को अक्सर शिक्षा, रोज़गार और स्वास्थ्य सेवा में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। बाल विवाह, घरेलू हिंसा और लैंगिक वेतन अंतर जैसे मुद्दे समानता की प्रगति में बाधा डालते रहते हैं। कार्यस्थल पर लैंगिक समानता हासिल करना भारत सहित विश्व भर में एक महत्वपूर्ण लक्ष्य बना हुआ है। समान कार्य के लिए समान वेतन को बढ़ावा देने वाली नीतियों के माध्यम से इस असमानता को दूर करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
भारत सरकार के खुद के कर्मचारियों में केवल ११ प्रतिशत महिलाएं हैं। सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए अधिक एवं नए अवसर आना जरूरी है, क्योंकि ऐसी महिलाएं नजर आती हैं, जो सभी प्रकार के भेदभाव के बावजूद प्रत्येक क्षेत्र में एक मुकाम हासिल कर चुकी हैं। सभी उन पर गर्व भी महसूस करते हैं, परन्तु इस कतार में उन सभी महिलाओं को भी शामिल करने की जरूरत है, जो हर दिन अपने घर और समाज में असमानता, अत्याचार एवं उपेक्षा को झेलने के लिए विवश है। आए दिन समाचार पत्रों में लड़कियों के साथ होने वाली छेड़छाड़ और बलात्कार जैसी खबरों को पढ़ा जा सकता है, परन्तु इन सभी के बीच जो अपने ही घर में सिर्फ इसीलिए प्रताड़ित हो रही हैं, क्योंकि वह एक औरत है। सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकॉनमी नाम के थिंक टैंक ने बताया है कि भारत में केवल ७ प्रतिशत शहरी महिलाएं ऐसी हैं, जिनके पास रोजगार है या वे उसकी तलाश कर रही हैं। महिलाओं को रोजगार देने के मामले में हमारा देश इंडोनेशिया और सऊदी अरब से भी पीछे है। किसी देश या समाज में अचानक या सुनियोेजित उथल-पुथल होती है, कोई आपदा, युद्ध एवं राजनीतिक या मनुष्यजनित समस्या खड़ी होती है तो उसका सबसे ज्यादा नकारात्मक असर स्त्रियों पर पड़ता है और उन्हें ही इसका खामियाजा उठाना पड़ता है।
दावोस में हुए वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम में ऑक्सफैम ने अपनी एक रिपोर्ट ‘टाइम टू केयर’ में घरेलू औरतों की आर्थिक स्थितियों का खुलासा करते हुए दुनिया को चौंका दिया था। वे महिलाएं जो घर को संभालती हैं, परिवार का ख्याल रखती हैं, वह सुबह उठने से लेकर रात के सोने तक अनगिनत सबसे मुश्किल कामों को करती है। अगर हम यह कहें कि घर संभालना दुनिया का सबसे मुश्किल काम है तो शायद गलत नहीं होगा। सोचिए, इतने सारे कार्य-संपादन के बदले में वह कोई वेतन नहीं लेती। उसके परिश्रम को सामान्यतः घर का नियमित काम-काज कहकर विशेष महत्व नहीं दिया जाता। प्रश्न है कि घरेलू कामकाजी महिलाओं के श्रम का आर्थिक मूल्यांकन क्यों नहीं किया जाता ? घरेलू महिलाओं के साथ यह दोगला व्यवहार क्यों ? दरअसल, इस तरह के हालात की वजह सामाजिक एवं संकीर्ण सोच रही है। पितृसत्तात्मक समाज-व्यवस्था में आमतौर पर सत्ता के केंद्र पुरुष रहे और श्रम और संसाधनों के बंटवारे में स्त्रियों को हाशिए पर रखा गया है। अफसोस इस बात पर है कि आज दुनिया अपने आधुनिक और सभ्य होने का दावा कर रही है। बड़ा प्रश्न है कि आखिर कब तक सभी वंचनाओं, महामारियों एवं राष्ट्र-संकटों की गाज स्त्रियों पर गिरती रहेगी।
जहां देश में प्रधानमंत्री के पद पर इंदिरा गांधी और वर्तमान में राष्ट्रपति के पद पर द्रोपदी मुर्मू हैं। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी राज्य की बागडोर संभाल रही हैं। बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष भी एक महिला मायावती हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को तो विश्व की ताकतवर महिलाओं में शुमार किया ही जा चुका है। पूर्व में लोकसभा में विपक्ष की नेता के पद पर सुषमा स्वराज और लोकसभा अध्यक्ष के पद पर मीरा कुमार ने भी महिला के गौरव को बढ़ाया है। कॉरपोरेट सेक्टर, बैंकिंग सेक्टर जैसे क्षेत्रों में इंदिरा नूई और चंदा कोचर जैसी महिलाओं ने अपना लोहा मनवाया है। वर्तमान में निर्मला सीतारमण सहित अनेक महिलाओं ने राजनीति में अपनी छाप छोड़ रही है। हमारी सेना में महिलाओं की यथोचित भागीदारी उसे ज्यादा शालीन, सामाजिक, योग्य और कारगर ही बनाएगी।
युगों से आत्मविस्मृत महिलाओं को अपनी अस्मिता और कर्तृत्वशक्ति का तो अहसास हुआ ही है, साथ ही उसकी व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व चेतना में क्रांति का ऐसा ज्वालामुखी फूटा है, जिससे भेदभाव, असमानता, रूढ़संस्कार जैसे उन्हें कमतर समझने की मानसिकता पर प्रहार हुआ है। आधुनिक महिलाओं ने अपनी विविध आयामी प्रतिभा एवं कौशल के बल पर उनके सामने मस्तिष्क एवं शक्ति बनकर अपनी क्षमताओं का परिचय दिया है, वहीं अपने प्रति होने वाले भेदभाव का जवाब सरकार, समाज एवं पुरुषों को देने में सक्षम है। महिला समानता दिवस यदि उनकी सक्षमता को पंख दे रहा है तो यह जागरूक एवं समानतामूलक विश्व-समाज की संरचना का अभ्युदय है।