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कान्हा संग राधिका

सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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काले-काले कजरारे नयन को सँवार कर,
कान्हा को कहाँ-कहाँ खोज आई राधिका।

खोज-खोज खरी-खरी बातन को बोलि-बोलि,
ग्वालन और गोपिन को सुनाय आई राधिका।

चार-चौबारा देखा छत और दुआरा देखा,
जमुना का किनारा भी तो देख आई राधिका।

छुपा है कहाँ जी कान्हा, कहाँ जा कर खोजूँ!
मधुबन का कोना-कोना देख आई राधिका।

नन्द की अटारी देखी, बाग और बावड़ी देखी,
कहीं नहीं मिले कृष्णा रूठ गई राधिका।

बड़े-बड़े अँसुअन की धार बह चली देखो,
नैनन को कजरा भिगोय रही राधिका।

इतने में श्याम आय राधा को मिले जाय,
नेह में भिगोय नैन देख रही राधिका।

कान्हा ने कहा-सुन कहीं भी न खोज मुझे,
मैं तो तेरे पास हूँ क्यों ढूँढ रही राधिका।

सुमिरन तुम्हारा कर मुझे ही पुकारें भक्त,
नाम का प्रताप देख सोच रही राधिका।

कैसी हूँ बावरी न देखा अपने अंतर में,
उधर-उधर यहाँ-वहाँ देख रही राधिका॥