डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
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दीप जलता बुझाओ न विश्वास का,
आ भी जाओ कि मौसम है मधुमास का।
मेरे आँगन में उतरा जो बच्चा कोई,
फूल घर में खिला हर्ष उल्लास का।
जाने किस रोज़ साकार होगा भला,
मैंने सपना जो देखा है आवास का।
शायरी का हुनर आ गया है मुझे,
रुख बदलने चली हूँ मैं इतिहास का।
जाने क्या हो गया किससे पूछूं भला,
क्यों वो आने का कह कर नहीं आ सका।
मेरी चुप्पी का चर्चा कहीं भी नहीं,
पर है चर्चा बहुत उसकी बकवास का॥