डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
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मिरा दिल सोच के इस बात को हर बार डर जाता।
अगर में डगमगा जाती, मिरा ईमान मर जाता।
मैं घर का काम निपटाकर हँसी ख्वाबों में खो जाता,
मिरा महबूब लेकिन शाम को ताखीर कर जाता।
उसे मुझ पर भरोसा है, ये कोई बात कम है क्या,
यही विश्वास थक जाऊं तो मुझमें जोश भर जाता।
कभी वो प्यार करता है तो बेहद प्यार करता है,
कभी वो बेवजह बे-बात ही तकरार कर जाता।
कभी ‘मनशाह नायक’ की कभी परवीन शाकिर की,
किताबे पढ़ते-पढ़ते मेरा सारा दिन गुजर जाता।
किसी को क्या खबर ‘शाहीन’ बहुत खुद्दार लड़की है,
मिरे माँ-बाप का मुझसे कभी कैसे असर जाता॥