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प्यारी बिटिया रानी

डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
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पिता के घर में रहकर भी हुई मेहमान है बेटी,
उसे समझा गया के गैर का समान है बेटी।

कभी मिलता नहीं है प्यार भैया की तरह घर में,
मगर होंठों पे हरदम ही रखे मुस्कान है बेटी।

मिरी काया में अपना अक्स क्यूं ना देखती अम्मी,
हरीक अम्मी के गुज़रे वक्त की पहचान है बेटी।

कभी सासू, कभी देवर, कभी हस्बैंड के हाथों,
बदन पर झेलती रहती सदा अपमान है बेटी।

विदा करके उसे माँ-बाप-भैया भूल जाते हैं,
इसी जज्बात को लेकर बड़ी हैरान है बेटी।

जनम लेने से पहले ही उसे मारा गया अक्सर,
कि दिल का दिल में रह जाए वही अरमान है बेटी।

सदी इक्कीसवीं ने जब इसे परखा नहीं ‘शाहीन’,
बदलते वक्त का खुद बन गई उनवान है बेटी॥