डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
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तुम्हारी याद अब आई बहुत है।
चले आओ कि तन्हाई बहुत है।
हँसी आती नहीं है इन लबों पर,
घटा मुश्किल की अब छाई बहुत है।
किसी को भी नहीं है फिक्र मेरी,
ये दुनिया लगती हर्जाई बहुत है।
रकीबों से कोई जा के ये कह दे,
मेरे होंठों पे सच्चाई बहुत है।
जहाँ तुम छोड कर तन्हा गये थे,
मिरी जद में वहाँ खाई बहुत है।
कभी सागर नहीं कहता है ‘शाहीन’,
कि अंदर मेरे गहराई बहुत है॥