सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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समय बड़ा विकट,
कोई आता नहीं था निकट
कभी आते हैं जब मन में विचार,
कैसे उजड़े थे लोगों के परिवार।
कितनों ने जान गँवायी,
ऐसी लीला प्रभु ने रचायी
हालात थे इतने ख़राब,
हुए घर कितने बरबाद।
ग़रीबों के बिगड़े सारे काज,
पेट भरने को वे थे मोहताज
न कोई था कहने को घर हमारा,
न कोई आमदनी का सहारा।
ऐसे में बने थे कुछ दिलवाले,
जिन्होंने काम किए प्रशंसा वाले
घर-घर घूमते बन कर सलाहकार,
ये बने थे असली मददगार।
ज़रूरतमंदों को दवाइयाँ पहुँचाना,
बीमार को अस्पताल ले जाना
सेवा ये करते दिन-रात,
नहीं जान की अपनी की परवाह।
जहां ये स्वयं नहीं पहुँच पाते थे,
किसी दूसरे को काम पर लगाते थे
पर सब नहीं होते श्रद्धावान,
मौक़े का फ़ायदा उठा बनते थे महान।
कुछ तो ऐसे थे कि मैं क्या बताऊँ हाल,
सिर्फ़ सेल्फ़ी लेने के लिए करते थे कमाल
कुछ तो बन गए रातों-रात धनवान,
ऐसे काम करने वाले क्या ये हैं इन्सान ?
अरे कैसे भूल जाते हैं ये सब गुनहगार,
कि एक दिन उन पर भी हो सकता है प्रहार।
क्षणभंगुर इस संसार में केवल कर्म ही अमर है,
राजा से रंक तक शेष सब नश्वर है॥