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पैसे के बल पर सम्मान लेने वाले अधिक दोषी-श्री प्रभाकर

पटना (बिहार)।

जितना दोषी पैसे के बल पर सम्मान बांटने वाले हैं, उससे अधिक दोषी वह लेखक है, जो इसे प्राप्त करना चाहता है। सम्मान-पत्र का महत्व तभी है, जब वह साहित्यकारों के व्यक्तित्व कृतित्व के मूल्यांकन के आधार पर दिया जाए।
यह विचार विख्यात साहित्यकार और संपादक योगराज प्रभाकर ने व्यक्त किए। मौका था भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में आभासी परिचर्चा व साहित्य सम्मेलन का। इसका संचालन करते हुए संयोजक व कवि सिद्धेश्वर ने कहा कि खरीदा गया सम्मान साहित्य जगत का अपमान है।
परिषद् की जनसंपर्क अधिकारी
बीना गुप्ता ने बताया कि कार्यक्रम प्रभारी ऋचा वर्मा एवं राज प्रिया रानी ने कहा कि जिन्हें श्रेष्ठ साहित्य सृजन करना नहीं आता, उन्हें भी बड़े-बड़े साहित्यकारों के नाम पर सम्मानित किया जा रहा है, जिसे लेने के लिए साहित्यकारों में भी होड़ मची हुई है। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अपूर्व कुमार ने भी भावना व्यक्त की। मुख्य अतिथि रश्मि ‘लहर’ (लखनऊ) के विचार से यदि किसी संस्था के पास इतने पैसे न हों कि वह किसी का सम्मान कर पाए, तो उसको सम्मान की औपचारिकता से दूर रहना चाहिए।

डॉ. अनुज प्रभात, सीमा रानी व अनिल कुमार जैन आदि ने भी विचार व्यक्त किए। राज प्रिया रानी के धन्यवाद ज्ञापन से समापन हुआ।