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शिव का नाम न छोड़

प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी
सहारनपुर (उप्र)
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कितना बड़ा भव‌ ताप रे मनवा, शिव का नाम जपन न छोड़।
उनसे ही सुधरे जनम की बिगड़ी, शिव में नित्य रमन ना छोड़॥

कर्मों का परिणाम भोग, कभी अंग कटें;कभी नेत्र नहीं।
बंधन करम से मुक्त करें प्रभु, पापी शिव की लगन ना छोड़॥

कितनी देह अभी तक बदली, मौज तुझे तो मिल जाए।
भक्ति-मुक्ति मेरी है बाधित, अब तो शिव का चयन न छोड़॥

प्रभु की कृपा से अपने-आपसे, तुझे अलग मैं कर पाई।
पथिक हूँ मैं प्रभु-प्रेम डगर की, भोग का काहे हठन न छोड़॥

तन के सुख-दु:ख से तो, तुझको कोई फर्क नहीं पड़ता।
मेरा सहयोगी बन, अब तो ‌प्रभु से आस मिलन न छोड़॥

हर इक पल जब प्रभु ध्यान में, कौन-सा दुःख तू भोगेगा।
तू ही भोक्ता सब भोगों का प्यारे, प्रभु के चरण न छोड़॥

प्रभु नाम जप से तू, बेसुध हो जाता है क्यों पगले।
शिव ही तेरे परम चिकित्सक, औषधि नाम लेवन न छोड़॥

प्रभु नाम-रस में तू डूबे, मैं भी डूबूं‌ संग नित-नित।
इस शरीर की ऐसी-तैसी, मंजिल दूर चलन न छोड़॥

सुंदर काया पाकर भी जो, विषय- भोग मैं डूबी रही।
अपने जी की करके प्यारे, जीवन मेरे जलन न छोड़॥

सच्चा मीत मेरा तू बन जा, शिव को बिठाऊं मन-मंदिर।
मानूंगी उपकार तेरा प्रभु-प्रीतम ओर गमन न छोड़॥

शिव के नाम के बीज बिखेरूं, मोहक मनहर पुष्प उगें।
सुगंध जिनकी शाश्वत है रे, सुंदर भक्ति सुमन न छोड़॥

कितना बड़ा भव ताप रे मनवा, शिव का नाम जपन न छोड़।
उनसे ही सुधरे जनम की बिगड़ी, शिव में नित्य रमन न छोड़…॥