डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
******************************
छत पर दो-दो चाँद खिले,
मैं करवा चौथ मनाऊँ आज
एक चाँद है नील गगन का,
दूजा करता जो दिल पर राज।
प्रीत की रीत मन भाय सजन,
जैसे तू चन्दा और मैं चकोर
तुझसे ही तो बांधी हमने,
जीवन की अनोखी ये डोर।
तुझसे से है रंगीन ये दुनिया,
जीवन में छाई बहार
खुद ही समझ ले कैसे कहूँ,
कितना मैं करूँ, तुम्हें प्यार।
तू मेरे माथे की बिंदिया,
तुम्हीं से सोलह श्रृंगार
तुमसे ही शोभे घर-आँगन,
छम-छम पायल की झंकार।
तुम्हीं बसे मेरी अँखियों में,
चेहरे पर है आता निखार
बिन तेरे सब सूना-सूना,
मन भाय ना कोई त्योहार।
तुम हो मेरे अनमोल रतन,
इसे मैं कैसे करूँ इनकार
जिस पल तेरा साथ ना हो,
वो पल ना मुझे स्वीकार।
प्यार के बदले प्यार मिले,
मेरा खिलता रहे संसार
रहे सलामत मेरा सजना,
करूँ चाँद से मैं इकरार।
एक चाँद अमृत बरसाता,
बरसा दो अमृत-सा प्यार।
खुशी-खुशी बीते ये दिन,
दिन हैं जीवन के दो-चार॥