सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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बहनें-भाई आज व्यस्त हैं,
काम बहुत-सा करना है
लगवाने को तिलक दूज पर,
बहना के घर चलना है।
मैंने सोचा बहुत से भाई,
ऐसे भी हैं इस जग में
नहीं कोई है उनका अपना,
चुभन बड़ी उनके मन में।
एक बार की बात याद,
आती है मुझको बचपन की
तिलक लगाने गए थे हम सब,
अपने एक भाई के घर।
उसकी अपनी बहन नहीं थी,
माँ की परम मित्र थीं वे
माँ ने मुझसे टीका लगवाया,
तब से मेरे भाई वे।
बस करती हूँ ऐसी आशा,
भाई दूज का दिन जब हो।
भाल सजे हों सबके सुंदर,
हर भाई की एक बहना हो॥