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पैंजनी पहने सजनी

सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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ओ भादों के मेघ बरस तू
ऐसे रिमझिम धीरे-धीरे,
पैर पैंजनी पहने सजनी
आई मिलन नदी के तीरे।

सरस करे तन-मन गोरी का
जिसके सुंदर नयन कटीले,
हरियाली चहुँ ओर सुशोभित
फूल खिले हैं नीले-पीले।

वर्षा की बूँदों से झिलमिल
वन उपवन और बाग-बगीचे,
मचल-मचल मन जाए कैसे
सुंदर लगते घास-गलीचे।

करूँ प्रतीक्षा पल-पल लगता,
ऐसे जैसे समय न बीते।
आन मिलो मेरी मृगनयनी,
तुम बिन सब कुछ लागे रीते॥