सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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हर कोई अपना बनाना चाहता है
दिल की धड़कन का तराना चाहता है।
यह कशिश चेहरे की केवल चार दिन,
ज़िंदगी भर आज़माना चाहता है।
है अभी जो ख़ुशनुमा एक नूर-सी,
हुक्म उस पर वह चलाना चाहता है।
आज तो है ओज और सौंदर्य भी,
लाभ पूरा वह उठाना चाहता है।
दीप आशा का दिखा कर मार्ग को,
रास्ते में छोड़ जाना चाहता है।
बने हैं कुछ नियम जीने के लिए,
क्यों उसे वह भूल जाना चाहता है।
मन तो भौंरे-सा है चंचल मन का क्या,
ख़्वाब मुझको वह दिखाना चाहता है।
बन के रहबर मेरा कोई आजकल,
अपना मुखबिर वह बनाना चाहता है॥