डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
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नया सवेरा, नयी आशाएं, नए संकल्प…
क्यों औरों की नकल करें हम!
कौन इन सबको समझाएगा
जो त्योहार नहीं है हमारा,
वह मेरे मन ना भाएगा।
नए साल का नया महीना,
अपना चैत मास जब आएगा
घर-घर में खुशहाली होगी,
फिर नव वर्ष मनाया जाएगा।
कहीं होगी माँ की पूजा,
कहीं राम ध्वज लहराएगा
घर-घर पूजा-आरती होगी,
उर भक्तिभाव से भर जाएगा।
हवा वसन्ती छेड़ेगी सबको,
फागुन चढ़ जिया जलाएगा
जन-जन का मन झूमेगा,
फिर नववर्ष मनाया जाएगा।
गायेगी डाल पर बैठी कोयल,
मन विरहण का तड़पाएगा
प्रकृति प्रेम का अद्धभुत मंजर,
सृष्टि का रंग निखर आएगा।
खेत में झूलेगी पीली सरसों,
आमों पर भी मंजर आएगा
रंग-बिरंगे फूल खिलेंगे,
धरा का रूप सँवर जाएगा।
नव पल्लव शाख पर डोलेंगे,
भौंरा फिर गुन-गुन गायेगा
महुए की भीनी-भीनी खुशबू,
धरती का आँगन महकाएगा।
फसलें खेतों में लहराएंगी,
कृषक अन्न धन से भर जाएगा।
मिलकर गाएंगे प्रेम गीत सब,
फिर नववर्ष मनाया जाएगा॥