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छूट गया जब साथ…

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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माँ-बाप का सुखद अहसास अपने बच्चों के लिए बहुत ज्यादा उम्मीदों से भरा होता है। उनके भविष्य के लिए हर माता-पिता चिंतित रहते हैं। अपने बच्चे का लालन-पालन करने में उन्हें पढ़ाने-लिखाने और आगे बढ़ने हेतु लगे रहते हैं। वह अपना पूरा जीवन अपनी सन्तान को समर्पित कर देते हैं। जब तक वह अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाता, उन्हें चिंता लगी रहती है। परिवार व माता-पिता उनके लिए सपनों को यूँ ही सजाए रखते हैं। मेरा बेटा जल्दी बड़ा होगा, फिर वह अच्छी जगह सर्विस पर लग जाएगा, हमारे दिन फिर जाएंगे, पर कभी-कभी वक्त का पहिया ऐसा चलता है कि सपना टूट जाता है व उम्मीदों का साथ बिखर जाता है। सपने का वह साथ बिखरे हुए मोती के समान धरातल पर गिर जाता है। हर माता-पिता के लिए अपने बच्चे का साथ बहुत मायने रखता है और बच्चा जब नवयुवक होने की कगार पर हो तो और भी ज्यादा आशा होती है। आशाएं बहुत रहती हैं अपने बच्चों से, पर एक बच्चा, वह भी जवान जब उन माँ-बाप के सामने असमय दम तोड दे तो वह कितने हताश हो जाएंगे, जरा सोचिए। मानो, उनके ऊपर पहाड़ ही टूट जाएगा। इस रंग-बिरंगी दुनिया में उनका जीवन बदरंग हो जाएगा, जब जवान बच्चे को एक बाप कंधा लगाएगा।

जब साथ की उम्मीदों की किरण टूट गई, तो फिर ज़ीने की चाह कैसे हो सकती है ?
एक छोटे से पौधे को पेड़ बना कर जब बड़ा करते हैं और कोई उसे काट दे तो सपने टूट जाते हैं। इन टूटे हुए सपनों को फिर कैसे जोड़ा जाए। जब अपने ही साथ छोड़ दें, तो फिर क्या होगा।