कुल पृष्ठ दर्शन : 40

वक़्त के सितम

सीमा जैन ‘निसर्ग’
खड़गपुर (प.बंगाल)
*********************************

दिन में तारे दिखा देते हैं,
रात अंधेरी कर देते हैं
वक्त के ये बदलते सितम,
हाय, रोम-रोम कंपा देते हैं।

महकती हुई बहारों में,
खिलती हुई कलियों का
ये वक्त के बेरहम थपेड़े,
मुख से घुँघटा उड़ा देते हैं।

लिहाज़ से कोई सरोकार नहीं,
नन्हीं ज़िंदगियों का भान नहीं
वक्र कर मुखमंडल की रेखा,
जिंदगी को खेल बना देते हैं।

ये संगदिल-कर्मों से बुझे तीर,
शैतान से छुपे चले आते हैं
बेदर्द पत्थर से, जिंदगी के रंग,
पल में जहां बेरंग बना देते हैं।

अस्त-व्यस्त साँसें अटकी हुई हैं,
मुखड़े पर हवाइयाँ उड़ रही हैं
सूनी नजरें ईश्वर के रहमो-करम पर,
करिश्मे की उम्मीद सजाए बैठी हैं।

ईश्वर की पवित्र अदालत में,
सद्कर्मों का मुकदमा चलाएंगे।
पाक रूह पर चढ़ा सत्य का वरक,
फैसला अपने हक़ में कर आएंगे॥