सीमा जैन ‘निसर्ग’
खड़गपुर (प.बंगाल)
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बसंत पंचमी: ज्ञान, कला और संस्कृति का उत्सव…
हे वीणावादिनी! तू इतना भला आज मेरा कर दे,
मानव के श्रेष्ठ गुणों से लबालब तू मेरा दामन भर दे।
शिक्षा के अहंकार में ना डूबूँ, सरल सहज ही बना रहूँ,
ज्ञान के निर्मल ओज से मैं, पानी-सा निर्मल और शुद्ध रहूँ।
दौलत की झूठी चाह में फंसकर, अपनों से ना दूर रहूँ,
बने जहां तक औरों का मैं, खुद से अधिक खयाल रखूँ।
ईर्ष्या की अग्नि से बच कर, सबकी खुशी में मस्त रहूँ,
फर्जी आडम्बर और दिखावे से, कोसों दूर ही रहा करूँ।
दे दो यह वरदान हंसवाहिनी, सादगी में जीवन सफल लगे।
जमीं पर चमकते सितारों-सा, नायाब कोहिनूर मुझमें सजे॥