सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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जीवन की आकांक्षा जैसे कल-कल बहती नदिया धारा,
भावों से स्पंदित रचता सृजन कल्पना कोई बेचारा।
वह मानव को मानव गढ़ता उसको दोषमुक्त करके,
कुत्सित जग का रूप सजाता ललित कला उसमें भर के।
नव मानवता विकसित करता दर्शन विज्ञान साथ लेकर,
रूढ़ि-रीतियाँ यथा हेतु आराधित साथ उन्हें लेकर।
रीति-नीति को अपनाता जो बने नहीं जड़ बंधन पाश,
साधन ऐसे अपनाता हो मानवता का पूर्ण विकास।
करता वह यह आशा मानव मन मानव को पहचाने,
संस्कृति वाणी भाव कर्म से वह सुंदर तन-मन को बखाने॥