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‘काश! इस नदी को नहला दे कोई…’

ग्वालियर (मप्र)।

‘जाने कब से वो नदी नहाई नहीं है, काश! इस नदी को नहला दे कोई’, इन पंक्तियों के साथ सुनीता पाठक ने संसद के काव्य महोत्सव का शुभारम्भ किया। मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवयित्री-कथाकार सुबोध चतुर्वेदी रहीं।
यह अवसर रहा सनातन धर्म मन्दिर के राधा-कुटीर में आयोजित साहित्य साधना संसद के काव्य-समारोह का। इसकी अध्यक्षता डॉ. कृष्णमुरारी शर्मा ने की। संसद के महामंत्री शैवाल सत्यार्थी ने सभी का स्वागत किया। समारोह में ‘नये घर में सब कुछ चकाचक है, नया फर्नीचर, नये परदे, नया बड़ा-सा एल.ई.डी. टी.वी., बस एक अपढ़ दादाजी पुराने हैं!’ रचना सुबोध चतुर्वेदी ने पढ़ी तो ‘वसंत आयो री, सखी री वसंत आयो री’ संगीता गुप्ता ने और विजय कृष्ण ‘योगी’ ने ‘दो संस्कृतियाँ, या कि नदियाँ, जब आपस में मिलती हैं, तो कर लेतीं पावन संगम!’ प्रस्तुत की। राजकिशोर वाजपेयी, राजेश अवस्थी ‘लावा’ सहित प्रकाश मिश्र, बीथिका तिवारी एवं श्वेता गर्ग ‘स्वाति’ आदि ने भी पाठ किया। संचालन ‘लावा’ ने किया।