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नारी तू अनंत

डॉ. मुकेश ‘असीमित’
गंगापुर सिटी (राजस्थान)
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नारी से नारायणी (महिला दिवस विशेष)…

नारी, तू नारायणी,
सृष्टि की अनवरत संवाहिनी
तेरी वेदना में हिमगिरि की धैर्यगाथा,
तेरी करुणा में मंदाकिनी की अविरलता।

तेरे चरण-स्पर्श से वसुधा विमल,
तेरे तप से चंद्रमा शीतल
तेरी ममता वटवृक्ष की छाया,
तेरी चेतना में ब्रह्म की माया।

वात्सल्य की सौम्यता में सरस्वती,
शौर्य की गर्जना में चंडी हुंकारे
कभी सिंधु-गर्जना, कभी चाँदनी की लोरी,
तेरे अंक में कालजयी गाथाएं चिंघाड़े।

यह कैसी अर्चना ?
किस प्रपंच में तुझे कैद किया ?
तेरी मुक्ति का स्वर रोष ने लील लिया,
तेरी उड़ान को मर्यादा कह कर
क्षितिज तक सीमित कर दिया।

नारी,
तू मात्र कोमल नहीं, क्रांति का स्वरूप है
तेरा मौन, सृजन की गोद में पलता,
तेरा स्वर, अनंताकाश तक गूंजता
तेरी सृष्टि में जीवन का प्रथम स्पंदन,
तेरी चेतना में नवयुग की आहट हर क्षण।

उठ,
तेरे कंधों पर युग का भार
तेरे गर्भ में भविष्य की लय,
तेरी वाणी वेद-मंत्रों की ध्वनि,
तेरी हुंकार से कंपित मलय।

मत मांग अधिकार-
तेरी शिराओं में बहते हैं अधिकार
मत खोज पहचान-
तेरी सत्ता कालजयी पहचान
नारी, तू नारायणी,
तू कालजयी, तू अनंत।
तेरी धरा, तेरा ही गगन,
तू स्वयं सृजन, तू स्वयं अंत॥