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तू दंडकारिणी, स्वयं नारायणी

पी.यादव ‘ओज’
झारसुगुड़ा (ओडिशा)
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नारी से नारायणी (महिला दिवस विशेष)…

धधक उठी है हृदय में ज्वाला,
रूप लिए वो अति विकराला
पौरूषता आज बेबस पड़ी है,
निकल पड़ी है निर्भया बाला।

धरती उसकी, अम्बर भी उसका,
चहुंओर बजे जिस का डंका
कांपे रावण सुन नाम सिया का,
धू-धू जले पल एक जो लंका।

अबला नहीं, तू सबला-तू शक्ति,
तू ही साहस की महाभिव्यक्ति
तेरे कदम ताल से थर्राएं दिशाएं,
तेरी गर्जना ही पुण्य की पुनरुक्ति।

अभेद कवच है नित ‘संघर्ष’ तेरा,
सहनशीलता से तू अटल धारणी
युग-युग बीता तेरी सुगाथाओं से,
तू जन्म-तू जीवन, तू ही संजीवनी।

सौंप न निज अस्मिता निरीह सम,
हुंकार तू, ललकार तू, गर्जना रोर तू
दुष्टों का नित्य कर तू मान-मर्दन,
तू दंडकारिणी, है स्वयं नारायणी तू।

तुझसे ही है सृष्टि का परिवर्तन,
नियति का अनवरत अनुष्ठान तू
तू ध्यान, तू साधना, तू अनुसंधान,
जगत सिद्धि का दैदीप्त प्राण तू।

धधक उठी है हृदय में ज्वाला,
रूप लिए वो अति विकराला।
पौरूषता आज बेबस पड़ी है,
निकल पड़ी है निर्भया बाला॥