संजय एम. वासनिक
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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‘समय’
कुछ भूलता नहीं,
पुरानी बातों को
मुलाक़ातों को,
यादों और वादों को
याद दिलाता है एक दिन,
और
मुस्कुराता है,
उसकी मुस्कान
बड़ी निर्दयी होती है।
यह मुस्कान ही उसका न्याय है,
उसके न्याय का विधान है
संसार उस पर हँसता है,
भला-बुरा बोलता रहता है
भला-बुरा करता रहता है,
आखिरी दम तक
उसका ध्यान रखता नहीं,
यह नादान इंसान।
बुरे कर्म करते रहता है,
पालता है अंहकार
डुब जाता है,
अहंकार के गर्त में
अहंकार ही तो है,
जो रावण की तरह
पूरे खानदान को,
खत्म करके ही
समाप्त होता है,
जाते-जाते सत्ता, धन, शक्ति
सब दूसरे को दे जाता है
ज्यादा चालाक इंसान
ज्यादा धोखा खाता है।
यही संसार चक्र है,
यही समय का नियोजन है॥