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होली है पर्व उमंगों का…

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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होलिका जलाते फागुन में,
पूर्णिमा नगाड़े की धुन में।
बाजार सजा है रंगों का,
होली है पर्व उमंगों का॥

प्रहलाद नाम का था बालक,
बहुत दुष्ट था जिसका पालक।
छोड़ो बोला हरि को जपना,
बात न मानी, मन रख सपना।
प्रभु दर्शन और सतगुण का,
लेता सुख भजन तरंगों का…।
होली है पर्व…॥

यह हिरण्यकश्यपु को भाया,
अपनी बहना को बुलवाया।
जो नहीं आग से जलती थी,
राक्षसी मंत्र से चलती थी।
गोदी ले प्रहलाद होलिका,
जली लपट उडा़ पतंगों सा।
होली है पर्व…॥

प्रहलाद बचे होलिका जली,
होती प्रभु माया सदा भली।
फिर हिरण्यकश्यपु को मारे,
नरसिंह रूप में भक्त तारे।
इसी याद में पर्व मनाते,
रंगों गुलाल हुड़दंगों का…।
होली है पर्व…॥

परिचय-ममता तिवारी का जन्म १ अक्टूबर १९६८ को हुआ है और जांजगीर-चाम्पा (छग) में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती ममता तिवारी ‘ममता’ एम.ए. तक शिक्षित होकर ब्राम्हण समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य (कविता, छंद, ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नित्य आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो विभिन्न संस्था-संस्थानों से आपने ४०० प्रशंसा-पत्र आदि हासिल किए हैं।आपके नाम प्रकाशित ६ एकल संग्रह-वीरानों के बागबां, साँस-साँस पर पहरे, अंजुरी भर समुंदर, कलयुग, निशिगंधा, शेफालिका, नील-नलीनी हैं तो ४५ साझा संग्रह में सहभागिता है। स्वैच्छिक सेवानिवृत्त शिक्षिका श्रीमती तिवारी की लेखनी का उद्देश्य समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।