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आज होली कौन जलाए…?

ऋचा गिरि
दिल्ली
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रंग बरसे… (होली विशेष)…

निष्कलंक निष्पाप मानव,
उर उदगार एक जिसके
उक्ति, वचन सब नेक जिसके,
छल ना जाने खेल कोई
निर्मल बेदाग बेमेल कोई,
सच की धुन पर गीत गाए
आज होली कौन जलाए…?

जिसकी नाद व्योम जाती,
सोए हुए को जगाती
मौन रहकर भी वो गूंजे,
पर पीर देख छलकती बूँदें
उर पर रख कर हाथ बोलो,
कभी शांत बैठो और टटोलो
आज होली कौन जलाए…?

निष्कलंक निष्पाप मानव,
चक्षु चित्त करुणा का सागर
कांधे लिए कृत्य गागर,
दृढ़ता कूटकर भरी हो
भाल पर धैर्य देवी खड़ी हो।
जैसे तपकर सोना, निखर जाए
आज होली कौन जलाए…?